Tuesday, August 20, 2019

"तुम अपना रंज-ओ-ग़म, अपनी परेशानी मुझे दे दो

ख़य्याम ने कई संगीतकारों की तुलना में कम काम किया लेकिन जितना भी किया बेमिसाल माना जाता है.
एक संगीत प्रेमी के नाते जब भी मैं उनके गाने सुनती हूँ तो उनमें एक अजब सा ठहराव, एक संजीदगी पाती हूँ जिसे सुनकर महसूस होता है मानो कोई ज़ख़्मों पर मरहम लगा रहा हो या थपकी देते हुए हौले हौले सहला रहा हो.
फिर चाहे आख़िरी मुलाक़ात का दर्द लिए फ़िल्म बाज़ार का गाना- 'देख लो आज हमको जी भरके' हो. या उमराव जान में प्यार के एहसास से भरा गाना हो "ज़िंदगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है मुझे, ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें" .....
दोनों की मुलाक़ात तो संगीत के सिलसिले में हो चुकी थी लेकिन जब मुंबई की एक संगीत प्रतियोगिता में जगजीत कौर का चयन हुआ तो उन्हें ख़य्याम के साथ काम करने का मौक़ा मिला और वहीं से प्रेम कहानी शुरु हुई.
जगजीत कौर ख़ुद भले फ़िल्मों से दूर रहीं लेकिन ख़य्याम की फ़िल्मों में जगजीत कौर उनके साथ मिलकर संगीत पर काम किया करती थीं.
दोनों के लिए वो बहुत मुश्किल दौर था जब 2013 में ख़य्या के बेटे प्रदीप की मौत हो गई. लेकिन हर मुश्किल में जगजीत कौर ने ख़य्याम का साथ दिया.
इसके लिए ख़य्याम मेहनत भी ख़ूब करते थे. मसलन उनकी सबसे बेहतरीन पेशकश में से एक, 1982 की फ़िल्म, उमराव जान को ही लीजिए.
ये एक उपन्यास उमराव जान अदा पर आधारित फ़िल्म थी जिसमें 19वीं सदी की एक तवायफ़ की कहानी है.
ख़य्याम ने इस फ़िल्म का संगीत देने के लिए न सिर्फ़ वो उपन्यास पूरा पढ़ा बल्कि दौर के बारे में बारीक से बारीक जानकारी हासिल की- उस समय की राग-रागनियाँ कौन सी थीं, लिबास, बोली आदि.
एसवाई क़ुरैशी को दिए एक वीडियो इंटरव्यू में ख़य्याम बताते हैं, "बहुत पढ़ने-लिखने के बाद मैंने और जगजीत जी (उनकी पत्नी) ने तय किया कि उमराव जान का सुर कैसा होगा. हमने आशा भोंसले को उनके सुर से छोटा सुर दिया.
मैंने अपनी आवाज़ में उन्हें गाना रिकॉर्ड करके दे दिया. लेकिन रिहर्सल के दिन आशा जी ने जब गाया तो काफ़ी परेशान दिखीं और कहा कि ये उनका सुर नहीं है. मैंने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की मुझे आशा का नहीं उमराव जान का सुर चाहिए. इस पर उनका जवाब था पर आपकी उमराव तो गा ही नहीं पा रही."
"फिर हम दोनों के बीच एक समझौता हुआ. मैंने कहा कि हम दो तरह से गाना रिकॉर्ड करते हैं. आशा ने मुझे क़सम दिलाई कि मैं उनके सुर में भी गाना रिकॉर्ड करूँगा और मैंने उन्हें क़सम दिलाई कि वो मेरे वाले सुर में पूरी शिद्द्त से गाएँगी. आशा ने उमराव वाले सुर में गाना गाया और वो इतना खो गईं कि वो ख़ुद भी हैरान थीं. बस बात बन गईं."
ख़य्याम के जीवन में उनकी पत्नी जगजीत कौर का बहुत बड़ा योगदान रहा जिसका ज़िक्र करना वो किसी मंच पर नहीं भूलते थे. जगजीत कौर ख़ुद भी बहुत उम्दा गायिका रही हैं.
चुनिंदा हिंदी फ़िल्मों में उन्होंने बेहतरीन गाने गाए हैं जैसे बाज़ार में देख लो हमको जी भरके या उमराव जान में काहे को बयाहे बिदेस..
अच्छे ख़ासे अमीर सिख परिवार से आने वाली जगजीत कौर ने उस वक़्त ख़य्याम से शादी की जब वो संघर्ष कर रहे थे. मज़हब और पैसा कुछ भी दो प्रेमियों के बीच दीवार न बन सका.
उमराव जान के लिए ख़य्याम और आशा भोंसले दोनों को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.
अपने 88वें जन्मदिन पर बीबीसी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था उमराव जान का संगीत देने से पहले वो बहुत डर गए थे क्योंकि उससे कुछ समय पहले ही फ़िल्म पाकिज़ा आई थी जो संगीत में एक बेंचमार्क थी.
साथी कलाकारों के साथ संगीत को लेकर ऐसे कई क़िस्से ख़य्याम के साथ हुए. मान मनुहार से वे अपने गायकों को मना लिया करते पर थे वो अपनी धुन के पक्के.
1958 में फ़िल्म 'फिर सुबह होगी' में मुकेश के साथ 'वो सुबह कभी तो आएगी' बनाया , 1961 में फ़िल्म 'शोला और शबनम' में रफ़ी के साथ 'जाने क्या ढूँढती रहती हैं ये आँखें मुझमें रचा'. तो 1966 की फ़िल्म 'आख़िरी ख़त' में लता के साथ 'बहारों मेरा जीवन भी सवारो' लेकर आए.
दिलचस्प बात ये है कि राजकपूर के साथ उन्हें 'फिर सुबह होगी' मिलने की एक बड़ी वजह थी कि वो ही ऐसे संगीत निर्देशक थे जिन्होंने उपन्यास क्राइम एंड पनिशमेंट पढ़ी थी जिस पर वो फ़िल्म आधारित थी.
ख़य्याम ने 70 और 80 के दशक में कभी-कभी, त्रिशूल, ख़ानदान, नूरी, थोड़ी सी बेवफ़ाई, दर्द, आहिस्ता आहिस्ता, दिल-ए-नादान, बाज़ार, रज़िया सुल्तान जैसी फ़िल्मों में एक से बढ़कर एक गाने दिए. ये शायद उनके करियर का गोल्डन पीरियड था.
अतीत में चलकर ख़य्याम के फ़िल्मी सफ़र की बात करें तो उन्होंने 1947 में अपना सफ़र शुरु किया हीर रांझा से. रोमियो जूलियट जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया और गाना भी गाया.
1950 में फ़िल्म बीवी के गाने 'अकेले में वो घबराते तो होंगे' से लोगों ने उन्हें जाना जो रफ़ी ने गाया था.
1953 में आई फ़ुटपाथ से ख़य्याम को पहचान मिलने लगी और उसके बाद तो ये सिलसिला चल निकला.