Friday, August 31, 2018

भारत के साथ रिश्ते पर पाकिस्तान की फ़ौज के सामने इमरान ख़ान की कितनी चलेगी?

मरान अहमद ख़ान नियाज़ी 25 मार्च, 1992 के बाद किसी और मैदान पर न भी उतरते तो भी पाकिस्तानी इतिहास के सबसे बड़े नायकों में गिने जाते.
क्रिकेट के पांचवें वर्ल्ड कप में उन्होंने अपनी करिश्माई कप्तानी के जरिए उस टीम को ट्रॉफी जीतने की राह दिखाई, जो शुरुआती पांच में से सिर्फ़ एक मैच जीत सकी थी.
जिसके खिलाड़ी हौसला हार चुके थे और नाकामी की यादों के साथ खाली हाथ घर लौटने की तैयारी में थे.
लेकिन इमरान ख़ान ने नाउम्मीदी की राख को आग में बदल दिया और पाकिस्तान की हर विरोधी टीम झुलसती गई. हाशिए पर खड़ी टीम चमत्कारिक ढंग से वर्ल्ड चैंपियन बन गई. साल बाद इमरान ख़ान एक और मैदान पर विजेता बनकर उभरे. 65 बरस के हो चुके इमरान ने इस जीत के लिए पूरे 22 साल संघर्ष किया. इस दौरान नाकामी दर नाकामी के बीच आलोचकों ने उनका नाम तक बदल दिया. उन्हें इमरान 'कान्ट' कहा जाने लगा. यानी 'इमरान से नहीं हो पाएगा'.
अब वही इमरान ख़ान पाकिस्तान की सरकार के मुखिया यानी प्रधानमंत्री हैं.
भ्रष्टाचार के ख़िलाफ उनका संघर्ष और नया पाकिस्तान बनाने का नारा वोटरों को भा गया.स्लामाबाद में मौजूद बीबीसी उर्दू के संवाददाता आसिफ फारुकी कहते हैं कि इमरान ख़ान की कामयाबी में करिश्मे के साथ किस्मत की भी बड़ी भूमिका है.
वो कहते हैं, "1992 के वर्ल्ड कप पर नज़र डालें तो इमरान ख़ान की कप्तानी की ख़ूबियों के साथ-साथ पाकिस्तान टीम की जीत में किस्मत का भी बड़ा अहम किरदार था. इसी तरह राजनीति में भी इमरान ख़ान किस्मत के धनी साबित हो रहे हैं. उन्होंने 2014 में धरना दिया जो तीन-चार महीने चला."
"लेकिन वो नवाज़ शरीफ को हटाने में कामयाब नहीं हुए. लेकिन फिर अचानक पनामा का मुद्दा सामने आया और वो नवाज़ शरीफ को ले डूबा."
किस्मत कुर्सी दिला सकती है लेकिन पाकिस्तान में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठना आसान नहीं. इस जिम्मेदारी को कांटों का ताज कहा जाता है.
पाकिस्तान के अख़बार डॉन के वरिष्ठ पत्रकार ख़ुर्रम हुसैन याद दिलाते हैं, "25-30 साल से हमारे देश का ये इतिहास रहा है कि चुनाव के बाद जो प्रधानमंत्री शपथ लेता है, वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है. क्या अब वो इतिहास बदलेगा? इमरान के सामने बहुमत बनाए रखने की चुनौती है. वो किस तरह दूसरी पार्टियों को साथ ला पाते हैं. उन्हें हाथ जोड़कर कहना होगा कि अब हमें साथ-साथ चलना है. इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा कि वो क्या नीति अपनाते हैं."
राजनीतिक विश्लेषक दावा करते हैं कि इमरान ख़ान के सामने मुश्किलों का ऐसा पहाड़ है, जिसे पार करना उनकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा इम्तिहान साबित हो सकता है.
पाकिस्तान की वरिष्ठ पत्रकार मरियाना बाबर नए प्रधानमंत्री की चुनौतियों की बात करती हैं, "ये क्रिकेट नहीं है. ये ऑस्ट्रेलिया नहीं है. ये है पाकिस्तान जो बड़े अर्से से बहुत सी दुश्वारियों का सामना कर रहा है. सबसे बड़ी चुनौती पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था है, जो बड़े बुरे हाल में है."
आम चुनाव के काफी पहले से ही अर्थशास्त्री पाकिस्तान के वित्तीय संकट का मुद्दा उठा रहे हैं. महंगाई बढ़ रही है. विदेशी मुद्रा भंडार और निर्यात घट रहा है. पाकिस्तानी रुपया गोते लगा रहा है और जून 2018 में चालू खाता घाटा बढ़कर 18 अरब डॉलर तक पहुंच गया था.
इमरान ख़ान भी आर्थिक चुनौतियों की बात लगातार करते रहे हैं.
बतौर प्रधानमंत्री पहले संबोधन में उन्होंने कहा, "मैं आज अपनी कौम से आप सबके सामने कहता हूं कि मैं आपको सादा ज़िंदगी गुजारकर दिखाऊंगा. मैं आपका एक-एक पैसा बचाकर दिखाऊंगा."
मरियाना बाबर कहती हैं कि प्रधानमंत्री के इस अंदाज़ की कुछ हलक़ों में तारीफ भी हो रही है.
वो कहती हैं, "कुछ ऐसे उपाय इमरान ख़ान ख़ुद ले रहे हैं, जिनमें बहुत पैसे तो नहीं बचेंगे लेकिन एक रिवाज़ शुरू हो गया है. प्रधानमंत्री का बहुत बड़ा घऱ था, वो उससे निकल गए हैं."

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